- Get link
- X
- Other Apps
- Get link
- X
- Other Apps
दुनिया धीरे-धीरे बहुध्रुवीय व्यवस्था की ओर बढ़ रही है, जहां शक्ति एक देश (मुख्य रूप से अमेरिका) के बजाय कई देशों (जैसे चीन, भारत, रूस) के बीच बंट रही है। यह बदलाव पश्चिमी देशों, खासकर अमेरिका और उसके एंग्लो-स्फीयर सहयोगियों (ब्रिटेन, ऑस्ट्रेलिया आदि) के लिए परेशानी का कारण बन रहा है।
पश्चिम की परेशानी क्यों?
1. प्रभुत्व में कमी:
पश्चिम, विशेष रूप से अमेरिका, दशकों से वैश्विक नियम तय करता रहा है—चाहे व्यापार हो, सैन्य शक्ति हो या संस्कृति। बहुध्रुवीयता में चीन, भारत जैसे देश अपनी आवाज बुलंद कर रहे हैं। उदाहरण के लिए, चीन की 'बेल्ट एंड रोड' पहल और भारत की 'आत्मनिर्भर भारत' नीति पश्चिमी प्रभाव को चुनौती देती है। इससे अमेरिका का एकछत्र राज कमजोर हो रहा है।
2. आर्थिक चुनौतियां:
एशिया, खासकर चीन और भारत, तेजी से आर्थिक ताकत बन रहे हैं। चीन दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है, और भारत भी G20 में बड़ा खिलाड़ी बन रहा है। पश्चिमी देशों को डर है कि उनके बहुराष्ट्रीय निगमों और व्यापारिक वर्चस्व को खतरा हो सकता है। जैसे, चीनी टेक्नोलॉजी कंपनियां (हुआवेई) पश्चिमी कंपनियों से आगे निकल रही हैं।
3. रणनीतिक गठबंधनों का कमजोर होना:
पश्चिमी गठबंधन जैसे NATO को अपने प्रभाव के कम होने का खतरा सता रहा है। भारत और रूस जैसे देश अपनी स्वतंत्र नीतियां अपनाते हैं, और कई विकासशील देश पश्चिम के बजाय चीन या रूस के साथ सहयोग बढ़ा रहे हैं। उदाहरण के लिए, अफ्रीकी और लैटिन अमेरिकी देशों में चीन का निवेश बढ़ रहा है, जो पश्चिम के लिए चिंता का विषय है।
4. विचारों का टकराव:
पश्चिम विशिष्ट ईसाई और woke विचारों को बढ़ावा देता है, लेकिन रूस और चीन जैसे कई एशियाई देश अलग-अलग मूल्यों को प्राथमिकता देते हैं। बहुध्रुवीय विश्व में, ये देश पश्चिम के वैचारिक प्रभाव को चुनौती देते हुए अपने नियम खुद बनाना चाहते हैं।
दुनिया किधर जा रही है?
दुनियाभर में ताकत का बंटवारा हो रहा है। भारत, चीन और रूस जैसे देश नई वैश्विक व्यवस्था में अपनी जगह बना रहे हैं। इससे पश्चिम को अपनी रणनीति बदलनी पड़ रही है, जैसे QUAD के जरिए भारत को अपने साथ लाने की कोशिश। लेकिन टकराव भी बढ़ रहे हैं—चीन-अमेरिका व्यापार युद्ध, ताइवान का मुद्दा, और रूस-यूक्रेन संकट इसका उदाहरण हैं।
निष्कर्ष
बहुध्रुवीयता पश्चिम के लिए चुनौती है, क्योंकि यह उनके आर्थिक, सैन्य और वैचारिक प्रभुत्व को कम करती है। फिर भी, यह दुनिया को अधिक संतुलित और विविध बना सकती है। पश्चिम को अब सहयोग और समझौते की राह अपनानी होगी, वरना टकराव बढ़ सकता है। दुनिया एक ऐसी व्यवस्था की ओर बढ़ रही है, जहां कोई एक देश 'बॉस' नहीं होगा—सबको मिलकर काम करना होगा।
- Get link
- X
- Other Apps
Comments
Post a Comment