बलूचिस्तान में अशांति: पाकिस्तानी सेना की दमनकारी नीति कैसे आजादी की लड़ाई को बढ़ावा दे रही है


1. सेना की भूमिका और बलूचिस्तान की आजादी की क्रांति

सेना की कार्रवाइयों, राजनीतिक अशांति और बलूचिस्तान की आजादी की क्रांति का आपस में गहरा संबंध है। यह पुरानी शिकायतों, आर्थिक असमानता और पाकिस्तान के बलूचिस्तान को नियंत्रित करने के तरीके से जुड़ा है। यह विश्लेषण बताता है कि सेना के हस्तक्षेप ने बलूचिस्तान को अस्थिर कैसे किया और आजादी की क्रांति को बढ़ावा कैसे दिया।

2. संघर्ष की जड़ें और सेना का दबदबा

1948 में बलूचिस्तान को पाकिस्तान में शामिल करना आसान नहीं था। खान मीर अहमद यार खान, खान ऑफ कलात ने आजादी चाही, लेकिन सेना ने इसे दबा दिया। इससे बलूचों और सरकार के बीच अविश्वास पैदा हुआ। शुरू से ही सेना का दखल बना रहा, जिसने स्थानीय लोगों में गुस्सा बढ़ाया।
1973-1977 का विद्रोह एक बड़ा उदाहरण है। प्रधानमंत्री जुल्फिकार अली भुट्टो ने प्रांतीय सरकार भंग की, तो सेना ने विद्रोह को कुचलने के लिए बड़ी कार्रवाई की। इसमें मानवाधिकारों का उल्लंघन हुआ और लोग बेघर हुए। इसने बलूच राष्ट्रवादियों को उग्र बना दिया।

3. शासन के लिए ताकत का इस्तेमाल

सेना ने बातचीत के बजाय ताकत पर जोर दिया, जिससे अस्थिरता बढ़ी। जनरल परवेज मुशर्रफ के समय (1999-2008) नवाब अकबर बुगती की हत्या एक बड़ा मामला था। 2006 में सेना ने उन्हें मार दिया। बुगती संसाधनों और स्वशासन की मांग करते थे। उनकी मौत ने आजादी की क्रांति को हवा दी और बलूचिस्तान लिबरेशन आर्मी (BLA) जैसे समूह मजबूत हुए।
सेना ने इलाके में ठिकाने बनाए और सैनिक बढ़ाए, जिसे बलूच "कब्जा" मानते हैं। ग्वादर बंदरगाह और CPEC जैसी परियोजनाओं से संसाधनों की लूट और जनसंख्या बदलाव के आरोप लगे।

4. लोकतंत्र को कमजोर करना

सेना ने बलूचिस्तान के लोकतंत्र को कमजोर किया। बलूचों को गायब करना, हत्याएं और विरोधियों को निशाना बनाना आम हो गया। 2000 के दशक से हजारों बलूच गायब हुए, जिसका इल्जाम सेना पर है। इससे डर का माहौल बना और युवा क्रांति की ओर बढ़े, क्योंकि शांतिपूर्ण रास्ते (जैसे प्रदर्शन या निष्पक्ष चुनाव) बंद कर दिए गए।
2018 और 2024 के चुनावों में सेना के हस्तक्षेप के आरोप लगे। बलूच राष्ट्रवादी कमजोर हुए और सेना समर्थित गुट मजबूत हुए, जिससे लोगों का भरोसा टूटा।

5. आर्थिक उपेक्षा

बलूचिस्तान में गैस, तांबा और सोना जैसे संसाधन हैं, फिर भी यह सबसे गरीब प्रांत है। सेना ने विकास के बजाय नियंत्रण पर ध्यान दिया। केंद्र सरकार संसाधनों का लाभ लेती है, लेकिन बलूचिस्तान को कुछ नहीं मिलता। CPEC में सेना की हिस्सेदारी से शोषण बढ़ा। यह असमानता क्रांति का बड़ा कारण बनी।

6. क्रांति का बढ़ना

सेना की नीतियों ने आजादी के आंदोलनों को बढ़ाया। बलूचिस्तान लिबरेशन आर्मी ने 2024 में "ऑपरेशन हीरोफ" जैसे हमले किए। सेना इसे भारत या अफगानिस्तान की साजिश कहती है, लेकिन अपनी सख्ती से उसने विदेशी हस्तक्षेप का रास्ता खोला। शांतिपूर्ण समाधान के बिना यह विद्रोह हिंसक बन गया।

7. सेना का तर्क और जवाब

सेना कहती है कि वह देश को जोड़े रखने और अलगाववाद से बचाने के लिए जरूरी है। 2014 के नेशनल एक्शन प्लान से कुछ शांति आई, लेकिन हिंसा फिर बढ़ी। यह दिखाता है कि सिर्फ सैन्य तरीके समस्या हल नहीं कर सकते। कुछ लोग कहते हैं कि सेना अशांति से फायदा उठाती है, ताकि उसकी ताकत और संसाधन बने रहें।

8. अंत में 

सेना ने बलूचिस्तान को अस्थिर किया—अतीत की सख्ती, लोकतंत्र को दबाने, आर्थिक उपेक्षा और ताकत के इस्तेमाल से। बातचीत के बजाय दबाव चुनने से बलूचों का गुस्सा बढ़ा और कुछ उग्र हो गए।
बलूचिस्तान की आजादी की क्रांति बलूच लोगों की आजाद बलूचिस्तान की जायज मांग को दिखाती है।

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